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अनोखा होता अगर ...
इंसानियत को मद्देनज़र रखता नगर,
आसान होती शिक्षा की डगर,
किंतु हुआ नहीं ऐसा मगर!
थोड़ी थीं सबको धर्म प्रचार की होड़,
तभी निर्मित हुए चुनौतियों के मोड़,
हसरतें सबकी कि उनका समूह हो सबसे बेजोड़,
ऐसा विष रहा था मानसिकता को सिकोड़,
सहमे हुए थे अंदरूनी रूप से लोग,
ऐसा अजीब क्यों हो रहा था मानवजाति पर प्रयोग,
त्रस्त थे लोग बहुत आम हो गए थे सभी मनोरोग,
क्यूं अनजान थे करने में हम प्रवीणता का सदुपयोग,
आखिर कहां हो रही थीं तनिक जी हुज़ूरी?
क्या सत्ता की होती अपनी कोई अलग मज़बूरी?
बजट ने बढ़ा दी थी फिर अमीर और गरीब में दूरी,
अनोखा होगा अगर अमल हो दावों की लिस्ट पर पूरी!
- यति
"All the serious problems in the world today could have been solved when they were simple problems."
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