
Share0 Bookmarks 11 Reads0 Likes
चाहे 'मैं' कुछ भी हूं,
सब कुछ तो नहीं हूं,
संपूर्ण तो नहीं हूं।
'मैं' और 'जग' पूरक हैं
परस्पर, विदूरक हैं
जो भाव में रखता हूं।
इसीलिए अपनत्व का समंदर
संसार में, होते हुए भी
पराया होने का स्वाद 'मैं' चखता हूं।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments