
जग की हर जाति पर मेरा कर्मसिद्ध अधिकार है
मैं मानव हूं! मानव होना यदि आपको स्वीकार है,
जगती का हर मानव मेरा अपना है रिश्तेदार है।
तेरी भी जय जयकार सखा, मेरी भी जय जयकार है।।
शब्दों की निर्मलता सीखूं, निर्मल विचार मन में बोऊं,
खुद का कूड़ा खुद ही बीनूं, खुद के बर्तन खुद ही धोऊं,
आएंगे कारवां कई अभी, इस राह चले, तापे, धापे,
रस्ते के कांटे बीन रखूं, कर्त्तव्य पूर्ण कर मैं सोऊं।
मेरे भीतर का ' शूद्र' यदि तुमको भी अंगीकार है,
तेरी भी जय जयकार सखा मेरी भी जय जयकार है।।
विद्यामंदिर में जाकर जब जीवन का सार बताता हूं,
मन की दुविधा में, मंदिर में, मानस जब भी दोहराता हूं,
जीवजगत का ब्रह्म से नाता, माया मध्य न आए तो,
जीव जीव में ब्रह्म निरख, खुद ' ब्रह्म' ही बनता जाता हूं।
मेरे मनुवादी होने पर, क्यों तब भी मुझे धिक्कार है!
तेरी भी जय जयकार सखा मेरी भी जय जयकार है।।
तप त्याग की खाद से हो उर्वर, श्रम से आंख नहीं मींचूं,
सुकर्म के बीच बोकर, भूमि, परिश्रम से अपने मैं सींचूं,
हो जेठ अषाढ़ की उनियाली, सावन भादो की हरियाली,
धूप धाम सब सहकर ही, पसीने की रेखाएं खींचूं।
मेहनतकश जाति पर मेरी, बोलो किसको प्रतिकार है।
तेरी भी जय जयकार सखा मेरी भी जय जयकार है।।
रणक्षेत्र मान इस जीवन को, जीवटता भरकर प्राणों में,
न उफ़ करूं न आह भरूं, खप जाऊं जग के त्राणों में,
मद ,मोह, सुविधा छोड़ सभी, केसरिया आचारों में हो,
जीवन अपना रण हाथ धरूं, जो शंखनाद हो घ्राणों में।
हूं ' क्षात्र ' धर्म का सेवक मैं, बस! हाथ मेरे हथियार हैं।
तेरी भी जय जयकार सखा मेरी भी जय जयकार है।।
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