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जून की चिलचिलाती गरमी मे
रिकसे पे बैठ कर आयी थी
पसीने की धार कान के पीछे से
झुमके के नीचे से
उसकी गर्दन के तिल को भिगो गयी
भीनी कस्तूरी जगा गयी
देखके मुझे मुस्करा
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