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जून की चिलचिलाती गरमी मे
रिकसे पे बैठ कर आयी थी
पसीने की धार कान के पीछे से
झुमके के नीचे से
उसकी गर्दन के तिल को भिगो गयी
भीनी कस्तूरी जगा गयी
देखके मुझे मुस्करायी
आँखें जगमगाई
फिर हाथ पकड़के मेरा
मेट्रो स्टेशन के पास बने चबूतरे पे बैठी
और बोली.. हाय अल्लाह
पानी की बोतल से दो घूँट पिये
फिर बोली मंदिर गयी थी
आज फास्ट है मेरा
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