गज़ल's image
Share0 Bookmarks 16 Reads0 Likes

जब मुझे याद कर रही होगी

आँख शबनम से भर रही होगी


वक़्त बा वक़्त अपने ही अन्दर

साँस दर साँस मर रही होगी


वो थी मूरत हाँ रेत की मूरत

धीरे धीरे बिखर रही होगी


नाज़ुकी से वजूद की अपने

कँपकँपाती सिहर रही होगी


सर से आँचल ढलक गया होगा

शाम छत पर उतर रही होगी


उसकी रंगत लपेट कर ख़ुद में

धूप यारों निखर रही होगी


फूल ही फूल खिल गए होंगे

जब कभी वो जिधर रही होगी


आँखों में इश्क़ दिख रहा होगा

पर ज़बाँ से मुकर रही होगी


हम से पहले भी और कितनों की

ये गली रह-गुज़र रही होगी 

ALI ZUHRI

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts