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मैंने भी तेरी कोख से ही था जन्म लिया

फिर मुझे क्यूं मां तुने कलंक कह दिया


मैनें तो तुझसे कुछ भी कभी मांगा ही नहीं

अनजाने में भी दिल पे चोट दी कभी नहीं


दीदी और भईया की होती हर दिली पूरी

और मेरी तो जरूरतें भी माँ रहती अधुरी

कुछ तो बता माँ ऐसी क्या मजबूरी रही

शनै शनै तु मुझसे जो दूरी बना रही


चाची के घर जो मंडली एक आई नाचने

संग नाची में तो मुझको तुम क्यूं लगी छुपाने

कल तलक अपने थे वो-देने लगे ताने

नौकर भी मुझको छुते है माँ करके बहाने

कल तलक जो गोद में लेते थे खिलाने

वो चाचा मामा भी आंख मुझपे लगे जमाने


कल तलक तुम बाबा मुझ पर प्यार लुटाते

हो आज फिर क्यूं मां मुझे तुम लोग सताते

मंदिर में ताल पर जो मेरे उठ कदम गए

फिर मुझको भिजवाने किनर बुलवाए गए


सोचा नहीं मां तेरे बिना कैसे रहूंगी

अनजान मंडली में किसको बाबा कहूंगी

बहन के कपड़ों पे कैसे कब्जे करूंगी

भाई बिन में किससे ऐसे झगड़े करूंगी

दादा दादी बाबा तुझे में याद करूंगी

पर वहाँ पे मां किसे में अपना कहूंगी


बुखार हो मुझे तो तु जल पट्टी करे मां

वहाँ कौन है ऐसा जो तेरी कमी भरेगा

क्या गुनाह मेरा जो मुझको दे सजा रही

मां अपनी ही बेटी को तु घर से भगा रही

तकदीर को बेटी की तू मां आजमा रही

नाजुक कली पे अपनी मां तू सितम ढा रही


बाबा को क्या हुआ है ये क्यूं रहते हैं खफा

मां मुझसे क्या हुई तू मुझको दे खता बता

छोटू भी देख अब तो मुझसे नजरें भेरता

कैसे भूलूंगी मेरे साथ था वो खेलता


लोगों ने कहा ये तुम्हें लज्जित कराएगी

जाति बिरादरी में ये नीचा दिखाएगी

रो रो के याद बहन में काजल को करूंगी

हंस खेलने की उम्र में पायल में पहनूंगी

ज़ालिम समाज ने है नियम बना दिया

छोटी सी इक बच्ची को किन्नर बना दिया

तेरे लिए नहीं है ये संसार कह दिया

माँ बिन बोले तूने मुझे बेकार कह दिया

वहां जाके मुझको तो बाई का नाम मिल गया

हर घर नाच गाने वाला मुझको काम मिल गया

मेरी तड़प को कोई कैसे समझेगाओ मां

खुद बदनसीब होके में देती फिरूं दुआ

तंग हो मां जो कभी में मरने को चली

मौकापरस्तों ने मेरी इज्जत भी लूट ली


जिस दिन ओ मां तू इस जहां से चली गई

मेरी आंख आंसुओं से पल में भर गई

रो रो के मुझको बाते तेरी याद आ गई

मां लाश पे तेरी ये बेटी रोने आ गई

लोगों ने वहां मुझको ही मुझसे गिरा दिया

दो पल बैठ तेरे पास मुझको रोने ना दिया

ज़ालिम लोगों ने मुझको वहां से भगा दिया

मरी तो तू थी पर मेरा ये दिल जला दिया


जग को छोड़कर हूं मां मैं भी जा रही

आज भी मां मुझको तेरी याद आ रही

औरों की तो अर्थी भी यहाँ पूजी जा रही

फिर क्यों मेरी लाश माँ ये जूती खा रही

दिल भी वही सांस वही जान वही है

फिर क्यूं किन्नरों का अंजाम यही है


अर्धनारीश्वर कह के शिव को पूजते हैं लोग

फिर क्यों मुझको नफरतों ले देखते हैं लोग

इस कदर देखा है मैं ने ये जमाना

चिंटी बना देना मगर इंसां ना बनाना

ए शिवा तू मुझ पर ये कर्म कर देना

मां-बाप का गुनाह मेरे तु माफ कर देना


योगी की कलम लिखती ये दर्द बथेरे

जमाने को बताती है मां दर्द ये मेरे

बाबा इसपे तेरी रहमत बनी रहे

ऐसे ही सदा लिखे ये लेख सुनहरे।

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