
याद ऐसे आती हैं कि आंखे भर जाती है
वो मेरा घर है जनाब, जहां मुझे जन्नत मिल जाती है
वैसे तो इतनी दूर रहकर भी में खुद को संभाल लेती हु
पूछे मुझसे कोई उदासी की वजह, मैं हंसकर टाल देती हु
वो पूरे दिन में एक बार घर पर बात हो जाती है
आराम करने से ज्यादा, उस वक्त मेरी थकान मिट जाती है
जो बैठू कपड़े धोने, मम्मी की वो बात याद आती है
सीख ले थोड़ा काम हर जगह मम्मी थोड़ी साथ जाती है
सारा खुद का भार जो पापा पर डाला करती हु
पापा संभालो document मेरे,जो हर पल कहा करती हु
वो मेरा घर है जनाब ,जहां में बेफिक्र रहा करती
भाई बहनों से झगड़ने के वो पल याद आते है
जब कोई यहां, छोटी सी बात पर बुरा मान जाते है
जो दादी मम्मी के हाथों का स्वाद यहां चखा नहीं जाता
खाना तो खाते है, पर वो मजा नहीं आता
मन करता है,आंखे बन्द करू और पहुंच जाऊं घर
जो सुकून घर में है,वो और कही नहीं आता....
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