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मैं कम ज़रियों, ज्यादा ख्वाबों से बनी तकदीर हुं,
मैं जले हुए मकान की दीवार पर बची तस्वीर हुं।
तुम मुक्कमल रास्ता हो कोई मंज़िल पाने के लिए,
मैं बच्चों ने खेलते हुए युं ही खींची हुई लकीर हूं।
तुम एक मीठा ख्वाब हो रेशमी मुलायम सेज में,
और मैं फुटपाथ पर स
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