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मैं कम ज़रियों, ज्यादा ख्वाबों से बनी तकदीर हुं,
मैं जले हुए मकान की दीवार पर बची तस्वीर हुं।
तुम मुक्कमल रास्ता हो कोई मंज़िल पाने के लिए,
मैं बच्चों ने खेलते हुए युं ही खींची हुई लकीर हूं।
तुम एक मीठा ख्वाब हो रेशमी मुलायम सेज में,
और मैं फुटपाथ पर सोई बहुत कड़वी तासीर हूं।
तुम एक आंगन से बंधे हुए एक बाम से ढंके हुए,
मैं बिखरा सारे जहां में हूं, मैं बेठिकाना फकिर हूं।
तुम बादशाह हो नसीब से ये सारा खेल तुम्ही से है,
मैं कभी तुम्हारा प्यादा, कभी घोड़ा, कभी वज़ीर हूं।
Vikram...
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