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मैं अपने इश्क से गमख्वार हूं पर शर्मिंदा नहीं हूं,
मैं तो तेरे शहर का मुसाफिर था बाशिंदा नहीं हूं।
तु मुझे बांध अपने जुड़े में रख सकती है तो रख लें,
हां पर मैं घोंसलों में रहनेवाला कोई परिंदा नहीं हूं।
मैं अंधेरा हूं अंधेरा और मुझे इसका गम भी नहीं है,
मैं आफताब
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