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किसी अपने ने कहा था एक दिन, कुछ नहीं है हम,
सुनो तो अच्छा खासा है नहीं तो, कुछ नहीं है हम।
किसी दिवान ए ख़ास की कभी रौनक नहीं होते,
बड़े है आम से इन्सान लिहाजा, कुछ नहीं हैं हम।
उसके शहर में वैसे तो हमारा रुतबा ख़ुदा का था,
पर उसके साथ होते थे तो कहते, कुछ नहीं है हम।
वैसे तो
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