
तुझसे सबकी शिकायतों का अंबार ले कर लौटा हूँ |
तेरी सृष्टि से मेरे मालिक अखबार ले कर लौटा हूँ ||
बच्चे का है क्रन्दन कि माँ का दूध नहीं मिलता,
जवानों का स्पंदन सच्चा महबूब नहीं मिलता,
गया तो था देने मैं भी दरिया प्रेम के मीठे पानी का,
किन्तु राम मैं बदले नफरत की आग ले कर लौटा हूँ ||
तुझसे सबकी ........
माता ढूंढ रही है भगवन उसका लुटा हुआ आँचल,
करे पिता क्या जब पंख अलग उसके व वह घायल,
लज्जित पद सम्बन्ध हुए हैं मशीनों के हैं सब कायल,
बाजार में गुरुओं के लघु होने का व्यापार ले के लौटा हूँ
तुझसे सबकी .....
आस बंधी है सबकी तुमसे चलो फिर कुछ कर आओ,
मृत्यु के जीवन व जीवन मृत्यु भरी गुत्थी तो सुलझाओ,
राजतन्त्र से लोकतंत्र तक है वही सवाल अब समझाओ,
देश धर्म और नागरिकता की ये फ़रियाद ले के लौटा हूँ
तुझसे सबकी ....
तुझसे सबकी शिकायतों का अंबार ले कर लौटा हूँ |
तेरी सृष्टि से मेरे मालिक अखबार ले कर लौटा हूँ ||
- विवेक मिश्र
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