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नहीं ही होगा यकीं उनको नहीं वो सिर्फ हम ही हो जाते,
वो जो गर जौहरी न होते तो हर एक को न परखने जाते,
टूटे जब से हम तभी से उनका भी कुछ तो गया है शायद,
ज़िंदगी नाम से भला वे क्यूँ फिर यूँ हमें अब तक बुलाते,
दीजिएगा तन्हाइयों को ख्वाबों का सहारा सदा हमदम
जान के अकेलापन को अवसर अक्सर वो मिलने आते,
उदगार हैं तो भला एक ही दिल में हो कैसे बसर इनका,
बिना पर भी परिंदे हौसला भर उड़ान उन तक भर पाते,
फना न होगें अफसाने तो सुनिये सुनाइये इन्हें हँसते गाते,
जज्बात न होते पाक दुआ अगर हमेशा वे कुबूल फरमाते,
इश्क है तो है, मत लगाईये इसमें "मान" की वो सब शर्तें,
सफर है तो है चलना है हमें तो चले चलिए चलते चलाते,
- विवेक मिश्र
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