प्रश्न उद्विग्न मन के - विवेक मिश्र's image
Poetry2 min read

प्रश्न उद्विग्न मन के - विवेक मिश्र

विवेक मिश्रविवेक मिश्र February 19, 2022
Share0 Bookmarks 103 Reads2 Likes

मन से अपने उद्विग्न हूँ, तुम्हारी व्यवस्था से खिन्न हूँ,

निश्चय ही तुम हो परमात्मा, मैं कंहाँ तुमसे अभिन्न हूँ ?


तुम्हारा प्रेम है रासलीला, तुम कहाओ छैल छबीला,

मैं भी तो हूँ कुछ हठीला, मेरे चरित्र से क्यूँ है गिला ?

सत्ता सब ओर जब तुम्हारी, तब मैं ही क्यूँ विपन्न हूँ ?

विभिन्नता सौंदर्य की प्रतीक, सौंदर्य से क्यूँ भिन्न हूँ ?

मन से अपने .......


तुम्हारा धर्म सत्य स्थापना का,मेरी याचना है अधर्म ?

तुम्हारा रण निशस्त्र साधना, मेरा संकल्प क्यूँ अपन्न ?

शिक्षा - दीक्षा संग ली ज

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts