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मन से अपने उद्विग्न हूँ, तुम्हारी व्यवस्था से खिन्न हूँ,
निश्चय ही तुम हो परमात्मा, मैं कंहाँ तुमसे अभिन्न हूँ ?
तुम्हारा प्रेम है रासलीला, तुम कहाओ छैल छबीला,
मैं भी तो हूँ कुछ हठीला, मेरे चरित्र से क्यूँ है गिला ?
सत्ता सब ओर जब तुम्हारी, तब मैं ही क्यूँ विपन्न हूँ ?
विभिन्नता सौंदर्य की प्रतीक, सौंदर्य से क्यूँ भिन्न हूँ ?
मन से अपने .......
तुम्हारा धर्म सत्य स्थापना का,मेरी याचना है अधर्म ?
तुम्हारा रण निशस्त्र साधना, मेरा संकल्प क्यूँ अपन्न ?
शिक्षा - दीक्षा संग ली ज
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