
बुद्धत्व की बिसात बिछाकर,युद्धत्व का वो आरम्भ करता,
शुद्धत्व की फरियाद सम्हाले, मरता ये फिर क्या न करता,
वो लेकर बैठे सब अपनी बातें, काली साजिश श्वेत नकाबें,
ये अधूरी सब निज करनी मानें, फल पकने का सब्र धरता,
सिद्धत्व की मन आस पालकर, संत्रत्व सन्यास है रचता,
शुद्धत्व की फरियाद ...................
वो लेकर आते अधिकार के नाते, देखी दुल्हन सजी बारातें,
ये शीश चढ़ा निज मौर्य सम्हाले, पग सबके माथ न रखता,
हारत्व को श्रेष्ठ श्रृंगार मानकर, जीत स्वयंवर जिद है वरता,
शुद्धत्व की फरियाद.................
वो लेकर पहुँचे बन्धन के अहाते, मोटी पतली सब सलाखें,
ये धराकक्ष मध्य डटा के आसन, ऊपर वाले क्रोध से डरता,
गुरूत्व का बल प्रभाव जानकर, लघुत्व का प्रभार सँवरता,
शुद्धत्व की फरियाद.................
शुद्धत्व की फरियाद सम्हाले, मरता ये फिर क्या न करता
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