
"मास्क" को ढाल बना पर्याप्त दूर बैठकर,
"वैक्सीन" के सहारे पे दुःखती पीठ टेककर,
"बीमारी" व "भय" का गट्ठर बना परे ठेलकर,
साक्षात्कार में प्रश्न किये कोरोना से भेंटकर,
कहा हमने कुछ खीझकर जब आपको क्या चाहिए ?
प्रतिप्रश्न कई दे शान्ति से बोला पहले ये मुझे बताइये ?
मोबाइल टॉवर तरंग से मृत चिड़ियों का हत्यारा कौन है?
"प्रकृति" रुदन के बावजूद क्यूँ "विकास" बेचारा मौन है ?
बढ़ती आवाज़ रोकी हमने उसकी आंखों में देखकर,
निरुत्तर उसे करना चाहा अपने एक प्रश्न से छेंककर,
किस हक से तुम ही दंड दोगे सृष्टि मनुज की मेटकर,
उसने कहा है सृष्टि ये ईश्वर की मानव न चले ऐंठकर,
हमने कहा लोकतंत्र है यहाँ आप सम्हल के पेश आइये,
आवाज़ आई उसकी आप खुद पहले सत्य वजूद पाइये,
आरक्षण, भ्र्ष्टाचार, महँगाई, दल-बदली, इत्यादि हटाइये,
और अंधभक्ति के मुखों पे राष्ट्रभक्ति मुखोटा न पहनाइए,
बात सुनी बगलें झांकी फिर कहा हमने शर्मोहया फेंककर,
अजी सब बढ़िया है आप तो रचिये बसिये यहीं पे पैठकर,
कृपा करें हमारे इस साक्षात्कार की टी आर पी को रेटकर,
हम हो आदी जी रहे जिंदगी खुद की अर्थी ही पे लेटकर,
- विवेक मिश्र
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments