"खाली खा"- विवेक मिश्र's image
Poetry2 min read

"खाली खा"- विवेक मिश्र

विवेक मिश्रविवेक मिश्र April 12, 2023
Share0 Bookmarks 54 Reads1 Likes
गाली खा, थाली खा कर मत कुछ तू तो खाली खा,
खाने से सार्थक ये जीवन मन भर के खुशहाली खा,

किसी ने चारा चबाया, किसी ने आसमाँ सारा खाया,
गिट्टी, सड़कें, नाले हड़पे जीत सका न तो हारा पाया,
गिरते पड़ते करतब करते उछल उछल कर ताली खा,
गाली खा, थाली खा...................

लक्ष्य बना खाने को किसी ने बहना लाडली बना ली,
बुल्डोजर पर बैठ चला कोई, किसी ने दाढ़ी बढ़ा ली,
कर पदयात्रा तले पकौड़े देखे ले जेल की जाली खा,
गाली खा, थाली खा.......................

खाने को कोई दल तोड़ रहा अपने दल में जोड़ रहा,
खाके कोई मंत्री कोई संतरी नहीं कोई अब चोर रहा,
सब्जबाग दिखा के लोंगों को बागों की रखवाली खा,
गाली खा, थाली खा........................

बाँटें जाति लिंग धर्म अगड़े पिछड़े कह ले इतना खा,
वोट तक तकि चुन ले व दे जख्म अनकहे छाले खा,
पत्ता पत्ता बूटा बूटा भरपेट पेटभर हर एक डाली खा
गाली खा, थाली खा.........................

गाली खा, थाली खा कर मत कुछ तू तो खाली खा,
खाने से सार्थक ये जीवन मन भर के खुशहाली खा,

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts