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था रावण ब्राम्हण शिवभक्त बड़ा श्री राम को भी भज सकता था,
चार चौघड़ी राज कर थका जो क्या वो मुक्ति भी तज सकता था ?
निज बेटी का हो पिता पाल सका न एक राजा की क्या न थी क्षमता,
भगिनीरक्षण की उसकी भी थी संस्कृति पर मन विषयों में था रमता,
माँ कैकसी शुभ लक्ष्य ले कुछ हृदय में संग विश्रवा ऋषि से ब्याही थी,
उसकी भी तो थी कुछ ममता पंचकन्या जो वरण उस का कर आयी थी,
भ्राता निद्रा वर ले कुम्भकर्ण एक दिन खा मास छः केवल सोता था,
स्वलालन पोषण का गुमान पुत्र देव जीत को भी सज सकता था,
था रावण ब्राम्हण शिवभक्त बड़ा श्री राम को भी भज सकता था,
बना यजमान महादेव को निज पुरोहित धर्म निभा दिखाई विलक्षणता,
संरक्षक सेवाभावी नैतिक व्यापारी सर्वधर्म समभाव में थी अग्रगण्यता,
वानरराज बालि ने कभी जिस रावण को
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