
Share0 Bookmarks 99 Reads1 Likes
था रावण ब्राम्हण शिवभक्त बड़ा श्री राम को भी भज सकता था,
चार चौघड़ी राज कर थका जो क्या वो मुक्ति भी तज सकता था ?
निज बेटी का हो पिता पाल सका न एक राजा की क्या न थी क्षमता,
भगिनीरक्षण की उसकी भी थी संस्कृति पर मन विषयों में था रमता,
माँ कैकसी शुभ लक्ष्य ले कुछ हृदय में संग विश्रवा ऋषि से ब्याही थी,
उसकी भी तो थी कुछ ममता पंचकन्या जो वरण उस का कर आयी थी,
भ्राता निद्रा वर ले कुम्भकर्ण एक दिन खा मास छः केवल सोता था,
स्वलालन पोषण का गुमान पुत्र देव जीत को भी सज सकता था,
था रावण ब्राम्हण शिवभक्त बड़ा श्री राम को भी भज सकता था,
बना यजमान महादेव को निज पुरोहित धर्म निभा दिखाई विलक्षणता,
संरक्षक सेवाभावी नैतिक व्यापारी सर्वधर्म समभाव में थी अग्रगण्यता,
वानरराज बालि ने कभी जिस रावण को महीनों काँख में दबाया था,
भविष्य उसे था भान सदा वह बन याचक यमर्राज से भी भिड़ आया था,
पूर्वजन्म का वो था पार्षद या प्रतापभानु भोगता श्राप जो भी पाया था,
चिंतन निष्पक्ष भाव से कर मानें वो स्वर्ग तक सीढ़ी भी रच सकता था,
था रावण ब्राम्हण शिवभक्त बड़ा श्री राम को भी भज सकता था,
काल में ही है कालखण्ड, कालखण्ड समा काल काल में ही जन्मता,
त्रेता द्वापर कलयुग सतयुग हर युग में दिखता युग की युग मे रमता,
दृष्टि का है फ़र्क सिर्फ कोई चाहे रहूँ अमर तो समझे कोई नश्वरता,
अंतर्मन में उतर के समझे जीवनलक्ष्य व भौतिक कर्म की अस्थिरता,
भिन्न अभिन्न में है अनन्त कथायें अनन्त हरि व हरी की अनन्त सत्ता,
संस्कृतियाँ अगर विविध न होतीं तो क्या ये जग चल सकता था,
था रावण ब्राम्हण शिवभक्त बड़ा श्री राम को भी भज सकता था,
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments