
Share0 Bookmarks 114 Reads1 Likes
शाम को अम्बर के सिर पर हमने धूप बदलते देखा है,
चाँद से छलके तारे देखे हवा को रूप बदलते देखा है,
होते सागर गहरे दुःख में बलाबल नद का हर लिए हुए,
भोले दिखते घायल मुख से हलाहल सा विष पिये हुए,
कूपमंडूकों को जल हटते ही हमने कूप बदलते देखा है,
शाम को अम्बर के सिर ................
श्वेत वस्त्र से बादल देखे काले हो धरा को हरा किये हुए,
सदियाँ बीतीं पत्थर बन सब लगते फेंके पत्थर जिये हुए,
चिल्ला चिल्ला जो हल्ला करता वह भूप बदलते देखा है,
शाम को अम्बर के सिर ................
बमवर्षक वक्त के रुख में बोल बम शब्द लबों पे सिये हुए,
कावड़िये देखे काँधे जिनके विश्वास आँच में तप दिये हुए,
जलसमाधित चिताभस्म को श्रृंगार अनूप बदलते देखा है,
शाम को अम्बर के सिर .................
शाम को अम्बर के सिर पर हमने धूप बदलते देखा है,
चाँद से छलके तारे देखे हवा को रूप बदलते देखा है,
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments