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शाम को अम्बर के सिर पर हमने धूप बदलते देखा है,
चाँद से छलके तारे देखे हवा को रूप बदलते देखा है,
होते सागर गहरे दुःख में बलाबल नद का हर लिए हुए,
भोले दिखते घायल मुख से हलाहल सा विष पिये हुए,
कूपमंडूकों को जल हटते ही हमने कूप बदलते देखा है,
शाम को अम्बर के सिर ................
श्वेत वस्त्र से बादल देखे काले हो धरा को हरा किये हुए,
सदियाँ बीतीं पत्थर बन सब लगते फें
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