
१. इश्क भी उसी से,नफरत भी उसी से,
बताना चाहूँ जिसे,छुपाऊँ भी उसी से,
दिन भर बचता भटकता रहा उसी से,
शब में फफक के लिपट जाऊँ उसी से,
गिला शिकवा तमाम कह चुका उसी से,
अब वो आये तो मैं जाना जाऊँ उसी से,
ग़ज़ल के कायदे में होगा राफिया उसी से,
मेरे तो अल्फाज उसी से काफिया उसी से,
२. अजीब है मेरा दाता पर मैं भी छोड़ता नही उसको,
माँगी दौलत तो दी उसने शान से फकीरी मुझको,
तुमने चढ़ा के हार उससे क्या कहा था दुआओ में,
दे दी तुम्हें जो जीत मुस्कुराते हुए देखकर मुझको,
न शिकवा कोई न ही गम कोई बचा मेरे खजाने में,
फरियाद करने का करेगा शायद वो ईशारा मुझको,
एहसास ने कहा कि रूठ कर दूर हो जाऊँ मैं उससे,
मैं ही मनाऊंगा मुझसे ज्यादा जानता है वो मुझको,
तन्हाई से ज़िक्र कर किया जब याद मैनें उसको,
तन्हाइयां तब भीड़ में भी बख्श दीं उसने मुझको,
- जय सियाराम सरकार की !
विवेक मिश्र
" रामाञ्चल "
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