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सफलता की आधुनिक परिभाषा ने इंसान को मारा है,
चिढ़ता जलता धनकुबेर सुकून क्यूँ गरीब का सहारा है,
लूटता फिर रहा वह माता का प्यार हर बच्चे के शीश से,
दे हाथों में यंत्र कर्णपिशाच व कह अब ये बाप तुम्हारा है,
रोया बाँस खोखलेपन पे बेंच स्वर बंशी का अंधभक्त को,
आधुनिककृत वाद्ययंत्रों के कंठ हेतु शोर शराबा गरारा है,
मर गया तंत्र व उसके आगे का रक्षक गण लक्ष्मी से लड़,
वजनी
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