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अभी जल ही तो हो तुम, बनोगे सैलाब तुम भी,
आसमान-अम्बुद में हो तो मेह कण (बूंद), बहे तो प्रवाहिनी रेवा हो तुम भी।
ठहरे तो तालाब, सिंधूर्मी सा फन उठाया तो कभी सुनामी- कभी सैलाब हो तुम भी।
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