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जो भी बद्दुआएं दी थी तुमने, वैसा कुछ नहीं होता।
अब आंखे नम नहीं होती, और कोई दुख नहीं होता
चुप रहता हूं, गुमशुम सा, भीड़ का कुफ्र नहीं होता
क्या कहूं अब मैं हंसता तो हूं, लेकिन खुश नहीं होता।।
अब आंखे नम नहीं होती, और कोई दुख नहीं होता
चुप रहता हूं, गुमशुम सा, भीड़ का कुफ्र नहीं होता
क्या कहूं अब मैं हंसता तो हूं, लेकिन खुश नहीं होता।।
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