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वो इश्क़ तो समझती हैं
मगर मेरी जात को नहीं समझती
वो नादाँन है पगली दोस्त तो समझती है
मगर मेरी महोब्बत को नहीं समझती
एक शायर को खोने का गम उसे नही मालूम,
वो दिल तो समझती हैं
मगर मेरी जज्बात को नहीं समझती।।
मगर मेरी जात को नहीं समझती
वो नादाँन है पगली दोस्त तो समझती है
मगर मेरी महोब्बत को नहीं समझती
एक शायर को खोने का गम उसे नही मालूम,
वो दिल तो समझती हैं
मगर मेरी जज्बात को नहीं समझती।।
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