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की तेरी ही गलियों में आवारा शाम बनकर आऊंगा
की कभी धूप तो कभी छावं बनकर आऊंगा
वैसे कभी इतने अंडे तो गणित में भी नहीं मिले
जितने डंडे तेरे गालियों से खाके आऊंगा
की आज कल के बच्चे पढ़ते लिखते कहा हैं
उनका बस फोन पे यही लगा रहता है, मेले बाबू ने खाना खाया
कहते है बस तुमसे मिलने सपनो में ही आऊंगा
की वो तकदीर नहीं हैं जो छूटा तो मर जाएगा
की जिंदगी में सफल वही हुआ है जो यूनिवर्सिटी आऊंगा
कि सच्ची में इश्क करना भारी पड़ गया मुझको
सोचो अगर हमने दिल पढ़ाई में लगाया होता
तो फिर एक दिन यही जिला कलेक्टर बनकर आऊंगा
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