Share0 Bookmarks 48724 Reads1 Likes
प्रेम की पात्रता
राम और अर्जुन की जीवन व्यंजना से यह पता चला कि,
प्रेम करना पर्याप्त नहीं है मात्र,
धनुष तोड़ना और उसपर प्रत्यंचा चढ़ाने की पात्रता भी होनी चाहिए,
अब यह न कहना कि यह तो कर्ण को भी आता था,
क्योंकि वीरता का अंत उसी क्षण हो जाता है,
जब उसका प्राण अधर्म के पाले में चला जाता है!
यह माना कि आदियोगी का त्रिशूल टूटा,
यह माना कि महामौन का मौन भंग हुआ,
यह माना कि परशुराम का क्रोधनाल भड़क उठा,
यह मान लिया कि प्रत्यंचा का टूट
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments