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शहीद नाम न दो
तुम अपनी असफलताओं का
ये रक्त बहता है
न कि रंग किसी त्यौहार का ।
वतन पे मिटता हूँ मैं
ये बलिदान नही मेरे गुनाहों का
बेवक़्त तनहा मरता हूँ
जहाँ न संग मेरे परिवार का ।
प्रहरी हूँ मैं तो क्या?
मेरी भी एक छोटी सी ज़िन्दगानी हैं
आदि अंत कुछ भी हो
जीवन पृष्ठ पे मेरी भी एक कहानी है।
विशाल "बेफिक्र"
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