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ये ढलती शाम, ये तन्हा मौसम।
ये बुझता दीप और तेरा गम।
ये शान्त पड़ा तालाब का किनारा।
आँखों से ओझल होता हर नजारा।
मुझसे मेरे ख्वाब छुड़ाता रहा।
मुझे तेरी याद दिलाता रहा।।
तेरे शहर का हर रास्ता और चौराहा।
तेरी गली के जानिब मुड़ता तिराहा।
तुम्हारे घर का वो दरवाजा जहाँ तुम बैठा करती थी।
वहीं बैठकर तो तुम रोज मेरी राहे देख
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