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कितना समेटे हम खुद को, कितने छोटे ख्वाब करे।
जख़्म देने वाले अपने है, किस किस से हिसाब करे।
मसरूफ़ है हर शख़्स अपनी ही दुनिया में,
कहाँ जायें हम, किससे मुतमईन सवाल-जवाब करे।
लगायें है मुखोटे झूठ के कितनों ही ने,
दाग दामन में सबके है, किस-किस को बेनकाब करे।
हिसाब करने वाले मुहब्बत क्या खाक करेंगे,
सलाम है उस आशिक़ को जो मुहब्बत बेहिसाब करे।
सारा शहर कायल है सादगी का हमारी,
जो कायल हो लफ़्जों का हमारे उसका इन्तिकाब़ करे।
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