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इन स्याह काली रातों में,
महबूब मेरे तुम कितना याद आयें।
मुझे सुलाने गाती थी जो,
वो नज़्म तुम्हारी मुझे कौन सुनायें।।
सुबह होती थी तुमसे, शामें होती थी तुमसे।
मेरे सूने घर में सारी रौनके होती थी तुमसे ।
फिर रोशन कर दो घर,&nbs
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