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हटेगा धना कोहरा, धुंध भी अब मिट जाएगा।
थोड़ा ठहरो, सब साफ साफ दिखता जाएगा।
भ्रम के जाल से, मैं जब निकल कर आएगा।
प्रखर ये शौर्य तुम्हारा, तब नये राह बनाएगा।
प्रण ले पथिक सा, जब स्वयं बढ़ता जाएगा।
साथ और सम्मान, दोनों इस जग में पाएगा।
तप कर कुंदन सा, काया भी निखर जाएगा।
मंजिल बाहें फैला कर, फिर तुम्हें बुलाएगा।
© विशाल
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