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मैं कविता हूँ !
अब मैं ऊब चुकी हूँ
चार दीवारी मे बंद रहकर फलते-फूलते
मैं नदियों मे डूबना चाहती हूँ
झीलों मे तैरना चाहती हूँ
पहाड़ों से चीखना चाहती हूँ
झरनों से फिसलना चाहती हूँ
बर्फ पर दौड़ना चाहती हूँ
मरुस्थल मे रुकना चाहती हूँ
जहाजों पर चढ़ना चाहती हूँ
पानी के भी और हवा के भी
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