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छुपा था कहीं

एक संयोग की तलाश मैं

उठा जो तनिक धुंआ

वो उमड़ पड़ा हमरा होकर भी हमी से लड़ पडा

रण हुआ घनघोर रण हुआ

करुणा को त्याग नाश हुआ

स्वयं का ही नाश हुआ

वो काली घटा सा उमड़ पड़ाअपने परायो मैं भेद भुला

वो बरस पड़ा अपनो पर ही बरस पड़ा

वो वह्नि सा था भसम का अभिप्राय था

वो दौड़ पड़ा सबको राख बनाने को दौड़ पडा

वो क्ष

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