Share0 Bookmarks 231172 Reads1 Likes
छुपा था कहीं
एक संयोग की तलाश मैं
उठा जो तनिक धुंआ
वो उमड़ पड़ा हमरा होकर भी हमी से लड़ पडा
रण हुआ घनघोर रण हुआ
करुणा को त्याग नाश हुआ
स्वयं का ही नाश हुआ
वो काली घटा सा उमड़ पड़ाअपने परायो मैं भेद भुला
वो बरस पड़ा अपनो पर ही बरस पड़ा
वो वह्नि सा था भसम का अभिप्राय था
वो दौड़ पड़ा सबको राख बनाने को दौड़ पडा
वो क्ष
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments