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समंदर के गहरे पानी सी है ज़िन्दगी की है ये कहानी,
कभी खो गई हैं मौज़े कभी आ गई है रवानी।।
कितने हैं ग़म और खुशियाँ कितनी,
कितने हैं काँटें और कलियां कितनी,
ढूंढने की इनको कोई भला करता है क्यूँ नादानी…
दिखता है जो वो हकीकत नहीं,
यहाँ ख़्वाब की कोई कीमत नहीं,
है ख़्वाब ऐसे लहरों पे जैसे तस्वीरें हो बनानी…..
बैठे किनारे पे क्या पाओगे ये जान लो तुम अगर,
लेके नया हौसला तुम इसमें जो जाओगे उतर,
खजाना है कितना इसमें भरा तुमको है राहें बनानी...
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