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वो मेरा नाम अपने दिल से मिटाने चले हैं
कमाल है बना घर अपना जलाने चले हैं।
उनकी जिद है उखाड़ देंगे जड़ से नींव मेरी
उनसे कहिए कहाँ हम खुद को टिकाने चले हैं।
जिस दिल को सजाया उन्होंने अपने ख्वाबों से
आज बहुत बेरुखी से उसको हटाने चले हैं।
जो तन गुल व कलियों से महकाया था कभी
आज वही काँटों से मेरा दामन सजाने चले हैं।
उनकी हर वो दुआ और मंसूबा हो कामयाब
हम हमेशा उनको इस पर आजमाने चले हैं।
कभी गालों की लाली तो कभी सुर्खी होठों की
नजरों को देखो तो वो भी अब ठिकाने लगे हैं।
कभी गैरों का नाम आते ही खफ़ा हो जाते थे
विप्लव सितम है रक़ीब से दिल लगाने चले हैं ।
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