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फिर उसी राह से पुकारे गए हैं हम
ख़ुद की नज़रों से उतारे गए हैं हम
ख़ून से लिखा था ख़त महबूब को
और फिर दो भाग में फाड़े गए हैं हम
मुमक़िन है वो अंजान रहे लाश से मेरी
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फिर उसी राह से पुकारे गए हैं हम
ख़ुद की नज़रों से उतारे गए हैं हम
ख़ून से लिखा था ख़त महबूब को
और फिर दो भाग में फाड़े गए हैं हम
मुमक़िन है वो अंजान रहे लाश से मेरी
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