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हमें कुछ कर गुज़रना चाहिए था
उसी दर पर ही मरना चाहिए था
मिलाता है तू उस से आँख कैसे
तुम्हे तो यार डरना चाहिए था
पता गलत जो लिख डाला है तुमने
ख़त उसके नाम करना चाहिए था
लगाई थी कभी जो आग तुमने
हमें उसमें ही जलना चाहिए था
तेरे जाने पर नाचता है ये कैसे
उसे तो हाथ मलना चाहिए था
बदल डाले हो अपना तुम ठिकाना
हमारे साथ चलना चाहिए था
हिज्र के वक़्त के ये मुस्कान कैसी
हमें तो यार लड़ना चाहिए था
~विनीत सिंह
Vinit Singh Shayar
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