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तुम्हें जानते हुए मैंने ख़ुद को जाना
तुम्हें खोजते हुए मैंने ख़ुद को खोजा
तुम्हें परखते हुए मैंने ख़ुद को परखा
तुम्हें हसते देख अक्सर मुझे अपनी आत्मा दिखाई देती
शायद हंसते हुए वो भी ऐसी ही दिखती होगी
तुम्हें परेशान देखता तो
"आदमी हूं भगवान थोड़े ही जो गलती नही कर सकता" मुहावरा ध्वस्त होता लगता
तुम मेरे समाज, मेरे विचार, मेरे वजूद का आइना थी
तुम मेरी इकाई थी
मुझे तुमसे मापा जा सकता था/है
मगर मैं कभी तुम्हारी इकाई नही बन पाया।
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