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जैसे कलम अनकहे एहसासों को चौराहे पर लाती है,
ना जुबान,ना आवाज फिर भी उधम मचाती है।
बिलकुल इसी
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ना जुबान,ना आवाज फिर भी उधम मचाती है।
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