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तुम मुझे देखकर मुस्कुराती रहो
मैं तुझे देखकर मुस्कुराता रहूँ
तुम प्रेम की गली में खड़ जो रहो
मैं सरे-शाम आता जाता रहूँ
तुम मुझे देखकर मुस्कुराती रहो...
तुम गीत प्रेम की जो सुनाती रहो
मैं हो बेखबर बस सुनता ही रहूँ
तुम प्रीत प्रेम की जो बरसाती रहो
मैं दीवानगी में बस नहाता रहूँ
तुम मुझे देखकर मुस्कुराती रहो...
तुम ख्वाब जो बुनो प्रेम में ओ प्रिये
मैं बनकर आशिक छा जाया करूँ
तुम हृदय से मुझे जो पुकारो प्रिये
मैं बनकर कमल खिलता रहूँ
तुम मुझे देखकर मुस्कुराती रहो...
तुम मुझे भूल जाने की खता ग़रकरो
मैं तुम्हें और भी याद आता रहूँ
तुम दिल में मुझे जो बसा कर रखो
मैं प्रेम की कविता सुनाता रहूँ
तुम मुझे देखकर मुस्कुराती रहो
- विकाश रंजन
मुस्कुराते रहें, स्वस्थ रहें!
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