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मैं किसी को बेवफ़ा कहता भी तो कैसे
बेवफ़ाई तो मेरे दिल ने ही की मुझसे
बस मेरा ख़ुद मेरे दिल पे इतना ना रहा
हो गया प्यार इसे जितना किसी और से
आख़िर क्यूँ हुआ प्यार, मुझे ख़ुद भी पता नहीं
जबकि मैंने तो सोते-जागते इश्क़ से दूर रखने की दुआ की थी खुदा से
हसरत-ए-मोहब्बत दिल में पैदा किया ही क्यूँ
जबकि मिटाने ही थे हस्ती मेरी दिल की दुनिया से
- विकाश रंजन
मुस्कुराते रहें, स्वस्थ रहें!
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