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शनि देव जी का गायत्री मंत्र - ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।


असाध्य रोगों के लिए मंत्र-ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महाबलाय स्वाहा।'

 

“मुखहिं बजावत बेनु धनि यह बृंदावन की रेनु-नंदकिसोर चरावत गैयां मुखहिं बजावत बेनु॥

मनमोहन को ध्यान धरै जिय अति सुख पावत चैन-चलत कहां मन बस पुरातन जहां कछु लेन न देनु॥

इहां रहहु जहं जूठन पावहु ब्रज बासिनि के ऐनु-सूरदास ह्यां की सरवरि नहिं कल्पबृच्छ सुरधेनु॥ “


सूरदास जी कहते हैं कि ब्रज की भूमि सौभाग्यशाली हो गई है क्योंकि नंद पुत्र श्री कृष्ण अपनी गायों को यहां लाकर चढ़ाई करते हैं। वे बांसुरी बजाते हैं। मनमोहन, श्री कृष्ण का ध्यान करने से मन को परम शांति मिलती है। वे अपने मन से ब्रज में रहने के लिए कहते हैं। सभी को यहां सुख और शांति मिले। यहां हर कोई अपनी धुन में रचा-बसा है। किसी को किसी से कोई लेना-देना नहीं है। वे कहते हैं कि ब्रज में रहकर उन्हें ब्रजवासियों के झूठे बर्तन से कुछ भोजन मिलता है, जिससे वे संतुष्ट रहते हैं।

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