
बहुत देर से मोबाइल का रिंग बज रहा
वो जैसे तैसे दौड़ते पड़ते किचेन से आती है
फोन कान के पास लगा कर बड़ी बेचैनी से बोली...
हेलो ... हेलो
मैं एक गहरी सांस लेते हुए धीमी आवाज़ में बोला हेलो...
मेरी आवाज़ सुनकर मानो वो लगभग रो सी पड़ी
आवाज़ संभालते हुए पूछी
कहां तक पहुंची तुम्हारी ट्रेन
मै एक वाक्य में उत्तर दिया
तुम्हारे घर के पास वाले स्टेशन से एक स्टेशन पहले रुकी है
वह तुरंत छत पर आ जाती है
मुझे कहती है तुम दरवाजे पे आ जाओ
जो दो लोग पहले से दरवाजे पर खड़े
उन्हे हटाकर मै देख रहा तुम्हारे घर तरफ़ में
जैसे फिलिस्तीनी बच्चे देखते ध्यान लगाकर
युद्ध में जाते अपने पिता की तरफ
तुम्हारे घर के पास आते आते तुम दिख जाती हो छत पर और हाथ हिलाने लगते हो
मुझे देखने के बाद
मै तुम्हे देख रहा और मेरी सांसे बहुत तेज़ गति में धड़कने लगी है
इस वक्त पूरे दावे के साथ कह सकता हूं कि
मै दुनियां का सबसे प्रसन्न व्यक्ति हूं
थोड़ी देर बाद ट्रेन गुज़र जाती है किसी और स्टेशन के लिए
और तुम्हारा घर पीछे छूट जाता है
ऐसे लग रहा जैसे किसी त्योहार के बाद
अगली सुबह चारो तरफ एक गहरी खामोशी,
एक निराशा की लहर और बीच में खड़ा मै
कुछ समय का यह दृश्य पूरे जीवन मेरी स्मृतियों में रहेगा
उदासी के पलों में खुद को सुनाऊंगा ये कविता
और तुम्हे याद करते हुए
फिर हस पडूंगा एक दिन
जैसे तुम हस देते हो ठहाका लगाते हुए।
विकास गोंड
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments