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सांझ हो रही है,
दिशाएं शांत हो रही
एक झींगुर की आवाज़
सांझ की शून्यता को
चीरती हुई पहुंच रही है मेरे कानों तक
बारिश के बाद मेंढकों का एक झुंड
उत्सव मनाकर शांत हो चुका है
कोयल घोसले से
चुपचाप झांक रही,
बनमुर्गियों की आवाज़
गुम हो रही इस सांझ के बेला में ,
मेरी गाय रस्सी तोड़ कर
भाग गई है
जिसे बांध कर रखा था, खुटे से
बारिश और आंधी के बीच
कहीं गुम हो गई है!
सभी कों हमारे बिछड़ने का ग़म है,
तुमसे अंतिम मुलाक़ात के बाद बिदा लेना
घोर निराशा और अपार पीड़ा को
महशुस करना है।
हम दोनों जिस पर कल चढ़े थे
जीवन के समुन्दर को पार करने के लिए
हमारे इश्क की टाइटेनिक अब डूब रही है!
तुम मेरे पास रहो
ऐसा करो हाथ
पकड़ लो
और गुनगुनाओ वहीं नज़्म
जो पहली बार मिलने पर सुनाए थे।
—विकास गोंड
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