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इंसान प्रैक्टिकल होते हैं
और रिश्ते नाज़ुक, भावुक
इंसान बस समझते हैं
इंसानों की बोली, और आहट
रिश्ते पहचानते हैं जज़्बात
दिल की बातें आँखों से देख लेते हैं
चुपके चुपके ज़िन्दगी में जगह बनाते
रिश्ते रिश्तों को बख़ूबी सहेज लेते है
रिश्ते समझ जाते हैं
मौसमों का बदलना
परिंदों का चहकना
बारिश और बूँदों के आलाप
लंबी लंबी और छोटी छोटी रात
माँगना दुआ किसी के बारे में सोचकर
आसमान में टूटते हुए तारे को देखकर
रिश्तों के सामने रिश्तों की घबराहट
सुख दुख की रिश्तों के दरम्यान आहट
इंसान होते हैं अल्हड़, नादान और असहज
रिश्ते रिश्ते होते, इंसान होते इंसान महज़
समझाना पड़ता है रिश्तों के अर्थ
इंसान समझे तो सार्थक नहीं तो व्यर्थ
विकास बंसल #विकासवाणी
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