
सारे दिन मूर्खों के, और ये सच्चाई है... ज़माना है होशियार तो मूर्खता में भलाई है

सारे दिन मूर्खों के, और ये सच्चाई है
ज़माना है होशियार तो मूर्खता में भलाई है।
आग लगती जब बुद्धिमान के दिमाग़ की बस्ती में
मूर्ख रहता मस्त बस अपनी ही मस्ती में,
ये संसार तो बस मूर्खों से सजा है
सबसे बड़ा मूर्ख जिसने खेल रचा है।
क्या जल गया, क्या बचा है,
सच में मूर्खता में बड़ा मज़ा है।
बुद्धिमान अपनी मूर्खता छुपा लेता है,
इसलिये वो मूर्ख नहीं कहलाता
मूर्ख, मूर्ख है क्योंकि वो छुपा नहीं पाता।
मूर्ख, मूर्ख है और सब ये जानते हैं,
बुद्धिमान को भी कहाँ वो बुद्धिमान मानते हैं।
मूर्ख अपनी मूर्खता पर कभी नहीं हँसता,
पर वो ज़माने को हँसा जाता है
ज़िन्दगी जीने का सलीक़ा सिखा जाता है।
बुद्धिमान बस मैं मैं में रहता है,
उसे कोई नहीं समझता कुछ
वो चीख़ चीख़ कर कहता है।
और न हो मूर्ख तो बुद्धिमान की पहचान कैसे हो,
मूर्ख तो मूर्ख है चाहे ऐसे हो या वैसे हो।
बुद्धिमान को ग़लत साबित करने,
मूर्ख कर लेता मूर्ख को प्रणाम
और बुद्धिमान करता बुद्धिमान को बदनाम।
मूर्ख न हो और न मूर्खता, ऐसा कोई व्यक्तित्व नहीं,
और बुद्धिमान का बिना मूर्ख कोई अस्तित्व नहीं।
बुद्धिमान बस हो रहा बुद्धिमान के हाथों आज दंडित,
सुने सबकी बनके मूर्ख वो सबसे बड़ा आज पंडित।
शेकसपियर, कालिदास दो सबसे बड़े मूर्ख
किया बहुत कमाल,
एक खिलाये घोड़ों को तो दूजा
बैठे जिसपे काटे वोही डाल।
बुद्धिमान में कुछ बात होती तो,
उनका भी एक दिन होता श्रीमान
मूर्खों को मिला ये सम्मान,
साल का एक दिन उनके नाम।
ज़माना मूर्खों की मूर्खता से खेल रहा है,
और धोखाधड़ी बुद्धिमान से झेल रहा है।
आज बुद्धिमान की वजह से नफ़रत की भरमार है,
और मूर्खों की वजह से ही बस यहाँ प्यार है।
अब तो समझ गये होंगे आप मेरा इशारा
मूर्ख बने रहने में ही होगा कल्याण तुम्हारा।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments