स्वाभिमानी कलम's image
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लिखूं  तुम्हें प्रेम जो सोचूँ 
लिखूं प्रतीक्षा हृदय को नोचूं
दर्द लिखूं या अश्रु रोकूं
आत्मग्लानि में खुद को झोंकू
बचा नहीं तनिक अभिमान 
बस कलम बचाये स्वाभिमान
मेरी कलम बचाये स्वाभिमान ।

लिखूं गर्व उस विजय को सोचूँ 
महाभारत के रंण में पहुंचू
तरकश भाले तीर कमान 
पाखंड में फंसता इंसान 
अभिमन्यु का वो बलिदान 
गवाह बना जिसका भगवान
मेरी कलम बचाये स्वाभिमान..

लिखूं संघर्ष उस समय को सोचूं 
गिरते पड़ते बस सफलता तक पहुंचू
साक्षर मगर बेरोजगारी का वो जाम 
वरदान बन गया जब अपमान
तब नौकर बना पढ़ा लिखा इंसान 
मेरी कलम बचाये स्वाभिमान..

नहीं चाहिये और गुलामी 
संकीर्णता की यही निशानी 
जब तक मेरी कलम में है जान 
पिंजरा नहीं  "लिखूं आसमान 
मेरी कलम बचाये स्वाभिमान 
मेरी कलम बचाये स्वाभिमान ।।


( विजय सिंह रावत )

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