ज़मीं को गर फिर से जन्नत बनाना है.....'s image
Poetry2 min read

ज़मीं को गर फिर से जन्नत बनाना है.....

vijay ranavijay rana March 29, 2022
Share0 Bookmarks 30934 Reads1 Likes

डाकखाने के किसी कोने में

लावारिस किसी चिट्ठी सी

आज पुराने कश्मीर की खबर निकली

सुना है कई और भी चिट्ठियां थी कहीं

जो डाकिए ही डकार गए

न किसीको खबर दी

न कोई ख़बर होने दी

हमने भी कभी खैरियत नहीं पूछी

जैसे भुला देता है कोई

दूर के करीबी, गरीब रिश्तेदार को


आज सच की चीखें सुनाई दीं

दहशतगर्दियों ने दबाए थे गले

हुकूमतों ने सारी खबरें दबाई थी

टुकड़े टुकड़े हुए थे शरीर के भी

विश्वास के भी, ज़मीर के भी

और बाकी सब रहे बेखबर

कुछ अनजाने,कुछ जानबूझ कर


अब जागा है जुनून, 

गुस्से में भरे पूछते हैं सवाल 

क्यों होने दिया, कैसे होने दिया ये सब

शायद डर है कहीं अंदर

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts