
Share1 Bookmarks 600 Reads2 Likes
सरपट भागते वो लम्हे
थम से गए हैं कहीं
अपनी उखड़ी सांसों को समेटते
गुनगुनी धूप में बैठे
सुस्ताने से लगे हैं कहीं
रात दिन सुबह शाम
जो गुत्थम गुत्था से रहते थे
कोई भी कभी भी
बिन बुलाए आ जाते थे
रूठे रूठे से अब दूर दूर बैठे हैं
सुबह आती है तो
जिद्दी बच्चे सी पसर जाती है
बिन बुलाए अब
दिन भी पास नहीं आता
शाम भी बहुत देर तक ठहरती है अब
रात भी देर देर तक सोती ही नहीं
सपने जो आते थे रह रह कर,
पूरे हो गए शायद
खाली सी मगर पूरी सी
नींद हो गई शायद
हर रोज उठ कर लगता है
सुबह मुस्कुरा कर
इंतजार में बैठी है शायद
अरसा बीत गया यूं ही
न कभी सुबह से बात की
न शाम से कोई गुफ्तगू
न दिन से मुलाकात की
न रात को कभी थपकी दी
अब आते हैं सब
अपने अपने हिस्से की
महक, धूप, संगीत और सपने लिए
दे जाते हैं लंबे खुशनुमा लम्हें
फुरसत से पास बैठे
खामोश मुस्कुराते हुए
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments