
सफर के शुरू से लेकर
आखरी लम्हें तक का साथी
मुसीबत की हर घड़ी में जो
बाहें फैलाए खड़ा रहा
हर मुश्किल में मेरे साथ रहा
मेरी खुशियां को संजोता रहा
न जाने कब मेरा संदूक
मेरी पहचान बन गया
कभी दोस्तो की मसनद बना
कभी दावत के लिए बिछ गया
कभी गहरी नींद का साथी
कभी तबले सा बज गया
कभी इस शहर कभी उस गली
कभी रेत में कभी पहाड़ पर
सर्दियों में ठिठुरता कभी
कभी गर्मियों में झुलसता रहा
बैठक की शान बना कभी
कभी कोने में जाके रूठ गया
पूरी शिद्दत से मगर
हर वक्त घर का हिस्सा रहा
कितनी यादों को समेटे
कितने वादों का गवाह
कितने तूफानों का साथी
वो मेरे वजूद का हिस्सा रहा
सफर के आखरी मुकाम पर
कातर आंखों से पूछा मुझसे
अब भला कहां जाऊं मैं
ताउम्र तो तेरे ही साथ रहा
मेरा संदूक फिर मेरे ही साथ रहा
मेरा संदूक फिर मेरे ही साथ रहा
……...Wandering Gypsy_rns
08 Jan 22
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