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मेरी यादों का संदूक

vijay ranavijay rana February 5, 2022
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सफर के शुरू से लेकर                        

आखरी लम्हें तक का साथी

मुसीबत की हर घड़ी में जो

बाहें फैलाए खड़ा रहा


हर मुश्किल में मेरे साथ रहा       

मेरी खुशियां को संजोता रहा   

न जाने कब मेरा संदूक         

मेरी पहचान बन गया


कभी दोस्तो की मसनद बना

कभी दावत के लिए बिछ गया

कभी गहरी नींद का साथी

कभी तबले सा बज गया


कभी इस शहर कभी उस गली

कभी रेत में कभी पहाड़ पर

सर्दियों में ठिठुरता कभी

कभी गर्मियों में झुलसता रहा


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