
Share1 Bookmarks 67 Reads1 Likes
सपनों की जिस चादर को ओढ़कर बिताया था बचपन मैने
आज उसको पंख बनाकर सारा आसमां छू आया हूं मैं
हसरतों से मैं ताका करता था जिस आसमां को कभी
उसके आंचल से लिपटकर हवाओं में तैर आया हूं मैं
वो ख्वाब जो लौट लौट आते थे अधमुंदी पलकों पे मेरी
ज़हे नसीब मेरा कि उन्हें आज हकीकत बना पाया हूं मैं
मेरे सारे वो सपने, वो ख्वाब जो हकीकत बने हैं आज और पलकों में भी सजें, अब ये नया ख्वाब संजो लाया हूं मैं
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments